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सच्चा प्रेम

 भोगने  और पाने में प्रेम है ही नहीं। प्रेम तो त्यागने और खोने में है।। रधिका का अधूरा मिलन ही नहीं, मीरा की भक्ति भी प्रेम है। सीता का समर्पण ही नहीं, उर्वशी की प्रतीक्षा भी प्रेम है।। प्रेम अर्थ और शब्दों में है ही नहीं। प्रेम तो असीमित विचरण में है।। देह के पार भि जँहा कुछ है ही नहीं। प्रेम तो उस  शून्यता में भी है।। भोगने  और पाने में प्रेम है ही नहीं। प्रेम तो त्यागने और खोने में है।।